क्या आप उन लोगों में शुमार हैं, जिन्हें बेहतर एकाउंटिंग और कर बचाने के प्रावधानों के उद्देश्य के लिए अपनी पहचान को अलग कर देखने के तरीकों की तलाश रहती है? अगर ऐसा है तो आप उस वक्त से कुछ अंदाजा ले सकते हैं, जब लोग संयुक्त परिवारों में रहते थे और संयुक्त आमदनी बांटते थे। अगर आपने हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) खाता खोला है तो आय कर बचाने के लिए भी आप इसी अवधारणा से मदद ले सकते हैं।
वास्तव में एचयूएफ अधिनियम के प्रावधानों के तहत आने वाले इस खाते से आप अपने भाई या पिता की लग्जरी कार चलाने का लुत्फ भी ले सकते हैं और अपने कारोबार में डेप्रीसिएशन क्लेम कर कुछ कर भी बचा सकते हैं। आइए हम आपको देते हैं इससे जुड़ी टैक्स सेविंग की जानकारी...
फ्लैक्सी-ऑप्शन
वैसे इसकी परिधि में केवल हिंदू परिवार ही नहीं आते बल्कि जैन, बौद्ध और सिख भी एचयूएफ बना सकते हैं। इसमें कम से कम दो सदस्य शामिल होते हैं जिनमें से एक पुरुष होता है और यह एक ही पूर्वज से सीधे तौर पर जुड़े होने चाहिए। लेकिन आप छोटे विभाजित परिवार भी एक पुरुष सदस्य के साथ एचयूएफ बना सकते हैं।
उच्चतम न्यायालय के मुताबिक, अंतिम पुरुष सदस्य के निधन के बाद ही एचयूएफ में केवल महिला सदस्य बच सकती है। एचयूएफ में परिवार के सबसे वरिष्ठ सदस्य को कर्ता (मुखिया) के नाम से जाना जाता है। को-पार्सनर पुरुष होते हैं, जबकि महिलाएं सदस्य होती हैं।
आम तौर पर कर्ता एचयूएफ की संपत्ति का प्रबंधन करता है। को-पार्सनर के पास विभाजन का अधिकार होता है, जो आम तौर पर एचयूएफ की संपत्तियां बांटने पर होता है। विभाजन की सूरत में सदस्यों को केवल रखरखाव मिलता है। एचयूएफ की संपत्ति में सदस्यों/कर्ता की ओर से दिए गए तोहफे या वसीयत में मिली जायदाद शामिल होती है।
टैक्स सेविंग में मददगार
आय कर अधिनियम के मुताबिक एचयूएफ एक अलग इकाई होती है और उसे व्यक्ति विशेष की तरह वही कर छूट मिलती है। केपीएमजी के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर विकास वसल ने कहा, 'यह स्लैब रेट और 80सी के तहत मिलने वाली कर छूट के योग्य होती है।' 1.5 लाख रुपए तक की आमदनी एचयूएफ के लिए कर मुक्त होती है और यह कारोबारी जायदाद, पूंजीगत लाभ या दूसरे स्त्रोतों से आने वाली आय का पैसा हो सकता है लेकिन इसमें तनख्वाह शामिल नहीं होती।
एचयूएफ बनाकर कर छूट दो बार क्लेम की जा सकती है। अगर किसी व्यक्ति की सालाना आय 3 लाख रुपए है और उसने कर बचाने के लिए कोई निवेश नहीं किया है तो उसे 15,000 रुपए बतौर कर चुकाना होगा। लेकिन अगर यह व्यक्ति एचयूएफ का सदस्य है और कर के दायरे में आने वाली आधी रकम एचयूएफ के हाथों में जा रही है जबकि आधी उसके हाथ में तो उसे कोई टैक्स नहीं चुकाना होगा क्योंकि 1.5 लाख रुपए तक आमदनी पर कोई कर नहीं बनता।
दूसरे फायदे भी
पूर्वजों की वसीयत या फिर सदस्यों की भागीदारी से मिली कुछ संपत्ति के साथ एक बार एचयूएफ बन जाए, उसके बाद कर्ज लेकर और कारोबार के लिए जायदाद का इस्तेमाल कर उसकी संपत्ति का आधार बढ़ाया जा सकता है। एचयूएफ की कमाई में शामिल आमदनी पर केवल उसी के आधार पर टैक्स लगेगा और उसे किसी व्यक्ति विशेष की आय से जोड़कर नहीं देखा जाएगा।
अगर कारोबार नाकाम होता है तो भी देनदारी सदस्यों की नहीं बनेगी। अर्न्स्ट एंड यंग में पार्टनर सोनू अय्यर के अनुसार एचयूएफ की देनदारी उसकी संपत्तियों तक सीमित है। इसलिए व्यक्तिगत क्षमता पर किसी भी सदस्य पर कोई देनदारी नहीं बनेगी।
याद रखिए
एचयूएफ का गठन पूरे परिवार की बेहतरी के लिए किया जाता है और इसलिए किसी भी कारोबारी फैसले पर सभी सदस्यों की राय शामिल होना जरूरी है। हर व्यक्ति को एचयूएफ की लंबी अवधि की संभावनाओं पर गौर करना चाहिए।
आईट्रस्ट फाइनेंशियल एडवाइजर्स के को-फाउंडर धुव अग्रवाल ने कहा कि एचयूएफ कर छूट का फायदा देता है लेकिन आपको यह याद रखना चाहिए कि एचयूएफ के पूरी तरह विभाजित होने तक परिवार की आमदनी को एचयूएफ की आय के तौर पर आंका जाएगा। इसके अलावा हर सदस्य एचयूएफ की संपत्ति का मालिक होता है, ऐसे में उन्हें व्यक्तिगत हितों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।