Monday, January 26, 2009

Tips for Saving Tax : टैक्स बचाने के तरीके

कर चुकाने से बचा नहीं जा सकता है और इसका  भुगतान करना हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है। क्यों न नए साल पर हम उपलब्ध कर छूट की जानकारी बटोरने के लिए मेहनत करने और उनका फायदा उठाने का प्रण लें। इस तरह आप मेहनत की गाढ़ी कमाई बचा सकते हैं और अतिरिक्त कर का भुगतान करने से बच सकते हैं। हर व्यक्ति कर छूट क्लेम करना चाहता है और इसमें कोई संदेह नहीं है कि कर चुकाते वक्त पैसा बचाना सभी की वित्तीय प्राथमिकताओं की सूची में शीर्ष पर होता है। लेकिन आय कर कानून की जटिलताओं पर गौर करने के बाद कितने ऐसे लोग होंगे जो इन छूट के बारे में वास्तव में जानकारी रखते हों या उनका पूरा फायदा उठाते हों। निश्चित रूप से आप इनमें से कुछ को नजरअंदाज कर बैठे हों। आइए, कर छूट का फायदा देने वाले ऐसे कुछ बिंदुओं पर गौर करें जिन्हें आम तौर पर नजरअंदाज किया जाता है...

 

होम स्वीट होम

आपका मकान केवल सिर ढकने के लिए छत ही नहीं देता बल्कि कर से बचने का रास्ता भी मुहैया कराता है। अगर आप किराए के अपार्टमेंट में रहते हैं और वेतनभोगी हैं तो हाउस रेंट एलाउंस क्लेम कर सकते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो आप कुल आमदनी के 10 फीसदी से ज्यादा बतौर किराए चुकाने पर कर छूट क्लेम कर सकते हैं। हालांकि इस मामले में कुछ शर्तें होती हैं। अगर आप अपने मकान में रहते हैं तो किसी भी वित्तीय संस्थान से मिलने वाले लोन पर चुकाए गए ब्याज पर कर छूट ले सकते हैं। कई लोग इस रकम को केवल 150000 रुपए तक सीमित मान लेते हैं। हालांकि यह ध्यान रखना जरूरी है कि ऐसा प्रॉपटीर् के निजी इस्तेमाल के मामले में होता है और जहां मामला प्रॉपर्टी किराए पर देने की बात होती है, उसमें ऐसा नहीं होता।

 

परोपकार का टैक्स बचत में फायदा

दान पर भी कर छूट मिलती है। अगर हम उन्हें चेक के माध्यम ये भुगतान करते हैं तो ज्यादा लंबे वक्त तक याद रखते हैं लेकिन अगर नकद दान देते हैं तो कुछ ही वक्त में भुला बैठते हैं। यह जरूरी है कि धर्मार्थ दान देते वक्त अपनी भी मदद की जाए। कहा भी जाता है कि चैरिटी सबसे पहले घर से शुरू होती है। हमें सिर्फ इतना करना है कि कर छूट के तहत आने वाले दान में दिए गए पैसे की रसीद भर चाहिए। और हमें वह जगह नहीं भूलनी चाहिए जहां ऐसी रसीद रखी जाती हैं।

 

एजुकेशन लोन पर टैक्स छूट

आज कर शिक्षा का खर्च आसमान छू रहा है जिससे वित्तीय बोझ भी बढ़ रहा है। इस सिलसिले में आप अपने पुत्र या पत्नी की उच्च शिक्षा के लिए लोन ले सकते हैं और ऐसे लोन पर दिया जाने वाला ब्याज का भुगतान आपको कर छूट उपलब्ध कराएगा।

 

सेहत ही धन है

मेडिकल इंश्योरेंस पर भी कर छूट मिलती है। हालांकि यह 15000 रुपए जैसी छोटी रकम पर मिलती है, लेकिन इसे नजरअंदाज करना सही नहीं है। मां-बाप के लिए मेडिकल इंश्योरेंस प्रीमियम पर 15000 रुपए की अतिरिक्त छूट मिलती है। इसके अलावा अगर आपने किसी ऐसे व्यक्ति के मेडिकल खर्च का बोझ उठाया है, जो आप पर निर्भर है तो आपको 40000 से लेकर 75000 रुपए तक की रकम पर छूट मिल सकती है।

 

दूसरे टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट्स

जीवन बीमा प्रीमियम, डेफर्ड एन्युटी, प्रॉविडेंट फंड में जमा पैसे, ट्यूशन फीस, हाउस लोन कर छूट के एक लाख रुपए के दायरे में आते हैं।

 

Tax Planning - Some Common Mistakes : टैक्स को लेकर कुछ सामान्य गड़बड़ियां

आमतौर पर लोग टैक्स की दर गलत कैलकुलेट कर देते हैं या कई बार खुद को गलत स्लैब में रखकर टैक्स छूट क्लेम  कर देते हैं। 

 

सरचार्ज या एजुकेशन सेस को लेकर खूब गलतियां होती हैं। इन दोनों को टैक्स पूरा कैलकुलेट होने के बाद लगाया जाता है। कई बार लोग या तो इसे लगाना भूल जाते हैं या पूरा नहीं लगाते। 

 

इसके लिए ई-फाइलिंग करें। ई-फाइलिंग करने से टैक्स खुद-ब-खुद सामने आ जाता है। 

 

आमतौर पर लोग साल के आखिर में टैक्स सेविंग स्कीमों में इन्वेस्ट करते हैं। हड़बड़ाहट में और दोस्तों की देखादेखी इस तरह इन्वेस्ट न करें। अपनी जरूरतें देखें और इनवेस्टमेंट करने से पहले एक्सपर्ट की सलाह लें। 

 

अपने भविष्य और फाइनेंशल जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सही स्कीम का चयन करना चाहिए। साल के आखिर में एकमुश्त बड़ी रकम के इन्वेस्टमेंट से पैसे की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है इसलिए साल भर थोड़ा-थोड़ा इन्वेस्टमेंट करते रहें। 

 

कई बार लोग लोन लेकर इन्वेस्टमेंट कर देते हैं। यह गलत है। इन्वेस्टमेंट हमेशा इनकम में से करना चाहिए। लोन अकाउंट से इन्वेस्ट करने पर छूट नहीं मिलेगी। 

 

लोगों को गलतफहमी होती है कि अगर पीएफ कट रहा है तो पीपीएफ नहीं कटा सकते। साथ ही दोनों को मिलाकर 70 हजार से ज्यादा जमा नहीं करा सकते। ऐसा नहीं है। पीएफ और पीपीएफ, दोनों को मिलाकर एक लाख रुपये तक जमा कराए जा सकते हैं। 

 

एक्सर्पट्स की सलाह 

 

80-सी के तहत एक लाख रुपये का इन्वेस्टमेंट जरूर करना चाहिए। जायज तरीके से टैक्स बचाने में कोई बुराई नहीं है। 

 

इन्शुअरन्स और इन्वेस्टमेंट में फर्क समझें। ये दोनों अलग-अलग चीजें हैं, इसलिए दोनों के लिए अलग-अलग रकम रखें। 

 

प्रफेशनल की मदद से अपने नॉन-वर्किन्ग जीवनसाथी की इनकम टैक्स फाइल तैयार कराकर भी आप टैक्स में छूट पा सकते हैं। इसमें संबंधियों द्वारा दिए जानेवाले गिफ्ट, ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी, लोन आदि दिखा सकते हैं। ऐसा करके आपकी इनकम पर दो लोगों के बराबर टैक्स में छूट मिल सकती है। 

 

पुश्तैनी प्रॉपर्टी या संबंधियों की ओर से गिफ्ट के रूप में मिली रकम से हिंदू अविभाजित परिवार यानी हिंदू अनडिवाडेड फैमिली (एचयूएफ) तैयार कराया जा सकता है। आपकी जो इनकम है, आप उसे अपने और एचयूएफ के बीच बांट सकते हैं। ऐसे में आपको भी टैक्स सेविंग के पूरे फायदे मिलेंगे और एचयूएफ को भी। एचयूएफ के नाम से आपको बैंक अकाउंट खोलना होगा और पैन कार्ड तैयार कराना होगा। इसके बाद आप एचयूएफ के नाम से ही सभी ट्रांजैक्शन कर सकते हैं। एचयूएफ के मामले में किसी प्रफेशनल या टैक्स एक्सपर्ट की सलाह जरूर ले लें। 

 

रकम को अलग-अलग बास्केट में इन्वेस्ट करना बेहतर होता है। मसलन कुछ रकम रिस्क वाली स्कीमों में लगा सकते हैं तो कुछ फिक्स्ड रिटर्न देने वाली स्कीमों में। इससे सुरक्षा और फायदा दोनों मिलेंगे। आपकी कुछ रकम पूरी तरह सुरक्षित रहेगी, तो कुछ पर बड़ा फायदा होने की संभावना भी बनी रहेगी। कुछ रकम को पांच साल के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट कराया जा सकता है, तो कुछ का निवेश इक्विटी लिंक्ड म्यूचुअल फंड्स में किया जा सकता है। 

 

उदाहरण के लिए अगर एक लाख रुपये इन्वेस्ट करने हैं तो बेहतर है कि इक्विटी लिंक्ड म्यूचुअल फंड में 30 हजार, पीपीएफ में 30 हजार और इन्शुअरन्स स्कीम में 30 हजार रुपये इन्वेस्ट करें। तीनों के अलग-अलग फायदे हैं। 

 

मसलन, म्यूचुअल फंड में ग्रोथ अच्छी मिल सकती है तो पीपीएफ में 8 फीसदी ब्याज मिलने के साथ-साथ रकम सेफ भी रहती है। इन्शुअरन्स कराना इसलिए अच्छा है क्योंकि इसमें रिस्क कवर होता है। 

 

इन दिनों होम लोन भी सस्ते हो गए हैं। इससे टैक्स की बचत भी होती है। अगर आप होम लोन ले लें तो डेढ़ लाख रुपये तक साल भर के ब्याज को टैक्सेबल इनकम में से घटा सकते हैं यानी इस तरह आपको कम टैक्स देना पड़ेगा।

 

 

लाखों टैक्सपेयर्स के लिए वरदान बनी रिटर्न की ई-फाइलिंग

नई दिल्ली : इस वर्ष इंटरनेट (ई-फाइलिंग) के जरिए आयकर रिटर्न भरने वाले लाखों  करदाताओं को इस प्रक्रिया से काफी फायदा हुआ है। आयकर विभाग ने फैसला किया है कि जिन लोगों की रिटर्न की रसीद पर निर्धारित सीमा से एक दिन बाद की तिथि है, उन्हें कोई पेनल्टी नहीं देनी होगी। 

 

विभाग के अनुसार उनके कंप्यूटर सर्वरों ने रिटर्न भरने के आखिरी दिन 24 घंटे काम किया था और कुछ लोगों की रसीद पर अगले दिन की तिथि मौजूद है। इसकी वजह अंतिम समय में रिटर्न भरने वाले लोगों की भारी भीड़ है। 

 

सरकार ने हाल ही में एक सर्कुलर में कहा था कि 2008-09 के लिए जिन 30 सितंबर तक दाखिल इलेक्ट्रॉनिक रिटर्न पर अगर प्राप्ति की रसीद एक अक्टूबर की भी है तो भी इसे निर्धारित समय में दाखिल माना जाएगा और इस पर कोई पेनल्टी नहीं वसूली जाएगी। 

 

आयकर विभाग के एक वरिठ अधिकारी ने बताया, '30 सितंबर को लगभग 2.5 लाख इलेक्ट्रॉनिक रिटर्न दाखिल की गई थीं और इनमें से एक लाख से अधिक करदाताओं की प्राप्ति रसीद एक अक्तूबर की है। अंतिम दिन रिटर्न भरने वालों की बड़ी संख्या के चलते यह समस्या पैदा हुई है और ऐसे करदाताओं को जुर्माना नहीं देना होगा।

 

इसके साथ ही ऐसे करदाताओं को कारोबारी घाटे को आगे ले जाने और अवमूल्यन (डेप्रिसएशन) की भी अनुमति दी जाएगी। आयकर कानून की धाराओं के तहत मिलने वाले छूट के लाभ भी दिए जाएंगे। इंटरनेट के जरिए रिटर्न भरने वाले करदाताओं को ऑनलाइन फॉर्म में सभी जानकारियां भरने के बाद इसे अपलोड करना होता है। इसके बाद वे इसका प्रिंट लेकर आयकर विभाग से रिटर्न प्राप्ति की रसीद लेते हैं। 

 

रिटर्न भरने के अंतिम दिनों में आयकर कार्यालयों में भारी भीड़ की वजह से ई-फाइलिंग रिटर्न दाखिल करने का एक सुविधाजनक जरिया बन गई है। आयकर विभाग का कहना है कि करदाताओं को अंतिम समय की हड़बडी और परेशानी से बचने के लिए रिटर्न भरने के लिए अंतिम तिथि का इंतजार नहीं करना चाहिए। ई-फाइलिंग के बारे में जानकारी वित्तीय सेवाएं देने वाली बहुत सी कंपनियों की साइट पर भी मौजूद है।


Have to pay tax on Income from Rent : किराए की आमदनी पर भी देना होता है टैक्स

रमेश को हर महीने 7,000 रुपए की आमदनी किराए से होती है। वेतन और अन्य स्रोतों से उनकी कर योग्य सालाना  आय 10 लाख रुपए है। रमेश को किराए की आमदनी पर कितना टैक्स देना होगा? क्या उन्हें इस पर कोई कर छूट मिलेगी

 

प्रॉपटी के दाम कुछ साल पहले काफी कम थे। उस समय बहुत से ऐसे लोगों ने निवेश के लिए दूसरा घर खरीदा था। इनके पास रहने के लिए पहले से प्रॉपर्टी थी। दूसरे घर को अक्सर लोग किराए पर दे देते हैं क्योंकि यह आमदनी का जरिया बन जाता है। अगर किसी व्यक्ति के पास एक घर है और उसमें वह खुद रहता है तो उसे इस पर कोई कर नहीं देना होता। लेकिन दूसरी प्रॉपर्टी के बारे में क्या नियम हैं

 

अगर दूसरी प्रॉपर्टी से किराए के तौर पर कोई आमदनी नहीं हो रही है तो उस पर मामूली/ अनुमानित किराए के अनुसार कर देना होता है। यह अनुमानित किराया बहुत सी बातों पर निर्भर होता है, जिसमें घर की कीमत, लोकेशन, सुविधाएं, उस जगह पर किराए की मौजूदा दरें शामिल होती हैं। वार्षिक मूल्य आय अर्जित करने की प्रॉपर्टी की क्षमता होती है। यह प्रॉपर्टी के मालिक को मिलने वाले वास्तविक किराए से भी ज्यादा हो सकती है। 

 

किराए से हासिल आमदनी पर कर बाध्यता 

इस आय को कर योग्य आमदनी में जोड़ दिया जाता है और कर बाध्यता कर के स्लैब के आधार पर होती है। किराए से मिलने वाली आमदनी का 30 फीसदी तक प्रॉपर्टी के रखरखाव और संपत्ति कर जैसे खर्च के भुगतान के लिए घटाया जा सकता है। 

 

अगर किराए पर दी गई प्रॉपर्टी को खरीदने के लिए होम लोन लिया गया है तो मासिक किस्त (ईएमआई) के भुगतान पर पूरा ब्याज आयकर कानून की धारा 24 के तहत आमदनी में से घटा दिया जाता है। इसके लिए 1.5 लाख रुपए सालाना तक की कोई सीमा नहीं है। अगर करदाता की प्रॉपर्टी खाली है और वह किसी अन्य शहर यह जगह पर नौकरी कर रहा है तो इस प्रॉपर्टी का वार्षिक मूल्य शून्य माना जा सकता है। 

 

किराए से होने वाली आय पर 'इनकम फ्रॉम हाउस प्रॉपर्टी' के मद में कर चुकाना होता है। रमेश को अपनी अन्य आय में इस आमदनी को जोड़ने के बाद कर बाध्यता की गणना करनी चाहिए। वह चाहें तो रखरखाव और अन्य खर्चों के लिए किराए की आमदनी में से 30 फीसदी रकम घटा सकते हैं।

 

 

What is Pre-EMI PEMI : प्री-ईएमआई यानी पीईएमआई..ये क्या है

आईटी कंपनी में काम करने वाले 32 वर्षीय गौतम पिछले कुछ समय से अपना घर खरीदने के बारे में सोच रहे थे। उन्होंने हाल ही में दो फ्लैट शॉर्टलिस्ट किए। इनमें से एक पूरी तरह तैयार था और दूसरे का अभी निर्माण शुरू नहीं हुआ था और वह कंस्ट्रक्शन-लिंक्ड पेमेंट के साथ मिल रहा था। गौतम इस बात को लेकर दुविधा में थे कि इनमें से कौन सा फ्लैट उनके लिए बेहतर रहेगा। 

 

अगर वह तैयार फ्लैट को चुनते हैं तो उन्हें तुरंत ईएमआई का भुगतान शुरू करना होगा, जिसके लिए वह वित्तीय तौर पर तैयार नहीं थे। उन्हें निर्माणाधीन फ्लैट ज्यादा बेहतर लगा। इसके साथ ही उन्हें इसके लिए प्री-ईएमआई (पीईएमआई) कॉन्सेप्ट की जानकारी मिली। इसमें उन्हें निर्माण से जुड़ा भुगतान करना था और उनका होम लोन भी इसी पर आधारित था। आइए जानें इस बारे में....

 

गौतम को ईएमआई का भुगतान पूरा लोन मिलने के बाद ही शुरू करना था। बीच की अवधि के लिए उन्हें केवल ब्याज चुकाना था। गौतम के फ्लैट की कीमत 40 लाख रुपए थी और उन्होंने 6 लाख रुपए का भुगतान अपनी बचत से कर बाकी के 34 लाख रुपए का होम लोन लिया। 

 

इसके साथ एक फायदा यह भी था कि बिल्डर को भी निर्माण के आगे बढ़ने के साथ भुगतान मिलने की वजह से उन्हें समय पर फ्लैट मिलने की उम्मीद थी। पीईएमआई उन लोगों के लिए एक बेहतर विकल्प है, जो फिलहाल हर महीने बड़ी रकम किस्त के तौर पर नहीं दे सकते। हालांकि, उन्हें बाद में अपनी वित्तीय हालत में सुधार होने की उम्मीद होती है।

 

कर्जदार को लोन की पूरी राशि के भुगतान से पहले केवल उस रकम पर ब्याज चुकाना होता है, जो उसे कई चरणों में दी गई है। जिन लोगों की वित्तीय स्थिति अभी ज्यादा अच्छी नहीं है और भविष्य में इसके सुधरने के आसार हैं तो वह इस तरीके से अपने घर के ख्वाब को हकीकत में बदल सकते हैं।

 

इसमें लोन की कुल राशि का भुगतान निर्माण के हिसाब से किया जाता है। इस तरह की योजना में घर खरीदने वाले को निर्माण पूरा होने पर ही भुगतान करना होता है। इसके साथ ही बिल्डर पर भी समय पर फ्लैट पर कब्जा देने का दबाव रहता है। खरीदार यह जांच सकता है कि बिल्डर अपने वायदे के अनुसार काम कर रहा है या नहीं।

 

गौतम के मामले में उन्हें 24 महीने के लिए ब्याज का भुगतान करना होगा और यह राशि लगभग 3.60 लाख रुपए (ब्याज दर 10 फीसदी और कंस्ट्रक्शन के आधार पर लोन की राशि के अनुसार) बैठेगी। यह उनका अतिरिक्त भार होगा क्योंकि ईएमआई का भुगतान दो वर्ष के बाद ही शुरू होगा। जो लोग किराए के मकान में रह रहे हैं, उनके लिए यह दोगुना भार होगा।

 

आयकर के लाभ के हिसाब से भी पीईएमआई अच्छा विकल्प नहीं है। आयकर कानून के अनुसार जब तक मकान का कब्जा नहीं मिलता तब तक कर छूट का दावा नहीं किया जा सकता।

 

Source: ET Hindi

30 जनवरी से 3G, अभी फ्री ट्रायल कर लें

मोबाइल पर 3जी के मैजिक का इंतजार अब खत्म होने को है। एमटीएनएल का कहना है कि 30 जनवरी से इसकी कमर्शल लॉचिंग कर दी जाएगी। नेक्स्ट जेनरेशन की इस टेलिकॉम सेवा में कई आकर्षक सुविधाएं होंगी। विडियो कॉन्फ्रेंसिंग, टीवी ऑन मोबाइल जैसे तमाम फीचर आपके हैंडसेट पर आ जाएंगे। यहां तक कि फोन से आप अपने घर की विडियो निगरानी भी की कर सकेंगे। शुरुआत के 15 दिनों तक यह सेवा कस्टमर को ऑप्शन के रूप में मुहैया कराई जाएगी, पसंद आए तभी आगे लीजिए। इस सर्विस के इस्तेमाल के लिए आपके पास 3जी हैंडसेट होना जरूरी है। चेक करके देखिए हो सकता है आपका हैंडसेट 3जी इनेबल हो।

 

एमटीएनएल के चेयरमैन एंड मैनेजिंग डायरेक्टर आर. एस. पी. सिन्हा के मुताबिक, MTNL, दिल्ली के कंस्यूमर्स को 3जी के लिए अब अधिक दिनों तक इंतजार नहीं करना होगा। उन्होंने बताया कि 3जी की सबसे बड़ी खूबी इसमें हाई स्पीड इंटरनेट सेवा होगी। दूसरा, मोबाइल पर बात करते वक्त क्वॉलिटी ऑफ स्पीच भी बेहतर होगी। शुरुआत में इस सेवा को लेने वाले कस्टमर को दुनिया जहां के गाने सुनने के लिए वर्चुअल रेडियो और विडियो कंटेंट देखने के लिए यू ट्यूब की सुविधा दी जाएगी। गाने सुनने के लिए देश विदेश के लगभग डेढ़ हजार चैनल मिलेंगे। 3जी सर्विस के तहत आपस में बात करने वाले कस्टमर्स वीडियो कॉल भी कर पाएंगे। अभी इस सर्विस की टैरिफ का एनाउंसमेंट नहीं किया गया है। लेकिन 15 दिन के ट्रायल के लिए कस्टमर्स को कोई पैसा नहीं देना होगा।

 

  • मोबाइल पर बिल्कुल ब्रॉडबैंड जैसी सर्विस यानी हाई स्पीड इंटरनेट का मजा। बिना लैपटॉप या कम्प्यूटर खरीदे यह संभव होगा।
  • मौजूदा तकनीक 2-जी के मुकाबले डेटा ट्रांसफर की स्पीड आठ गुना बढ़ेगी।
  • वॉयस और विडियो डेटा ट्रांसफर यानी आवाज के साथ कॉलर की फोटो भी देख पाएंगे।
  • फोन पर लाइव टीवी देखते हुए एसएमएस लिखिए, कॉल अटेंड कीजिए।
  • क्रिकेट मैच देखते हुए एफएम पर गाने सुनिए, इस दौरान डेटा शेयरिंग जारी रहेगी।- 3-जी सर्विस के लिए ऐसा हैंडसेट होना जरूरी है, जो 3-जी से लैस हो।
  • 3-जी सर्विस के लिए ऐसा हैंडसेट होना जरूरी है, जो 3-जी से लैस हो।
  • इसके बाद एमटीएनएल का मोबाइल कनेक्शन लीजिए और उसमें जीपीआरएस ऐक्टिवेट करवा लीजिए। अभी तो 15 दिन के ट्रायल के लिए आपको एक भी पैसे खर्च नहीं करने है।
  • अगर आपके पास 3-जी फोन नहीं है, तो मौजूदा हैंडसेट को अपग्रेड करवा सकते हैं।
  • इसके लिए फोन में अपग्रेडेशन की सहूलियत होना जरूरी है। इसके लिए आपको जेब ढीली करनी होगी।
  • एक्सर्पट्स के मुताबिक अपग्रेडेशन की कीमत चुकाने के बजाय नया 3-जी फोन खरीदना ज्यादा बेहतर साबित होगा।
  • अगर आपके पास 3-जी फोन नहीं है, तो मौजूदा हैंडसेट को अपग्रेड करवा सकते हैं।
  • इसके लिए फोन में अपग्रेडेशन की सहूलियत होना जरूरी है। इसके लिए आपको जेब ढीली करनी होगी।
  • एक्सर्पट्स के मुताबिक अपग्रेडेशन की कीमत चुकाने के बजाय नया 3-जी फोन खरीदना ज्यादा बेहतर साबित होगा।
  • अब अगर आप मोबाइल हैंडसेट खरीद रहे हैं तो अब ये देखना न भूलें कि आपका हैंडसेट थ्री जी सर्विस के लिए तैयार है।
  • सस्ता 3-जी फोन 10 से 15 हजार के बीच आता है, जिसकी हाई एंड रेंज 30-35 हज़ार तक जाती है।
  • कुछ चीनी कंपनियों ने 3,000 रुपये तक के 3-जी फोन उतारने की तैयारी कर ली है।

 

 

एलआईसी ने ये बात तो छिपा ही ली

भारतीय जीवन बीमा निगम की जीवन आस्था योजना को मिली भारी प्रतिक्रिया को किस तरह लिया जाए? क्या यह एक बेहतरीन उत्पाद तैयार करने के लिए एलआईसी को ग्राहकों द्वारा दिया गया 8000 करोड़ रुपए से ज्यादा का उपहार है ? या फिर कुछ चालाकी से और कम पारदर्शिता से बेची गई एक स्कीम का नतीजा? हमारा जवाब दोनों में ही है। एलआईसी ने निश्चित तौर पर एक ऐसा उत्पाद बनाया जो अनिश्चित दौर के लिए सबसे उपयुक्त है और बाजार की नब्ज पकड़ता है- एक ऐसा उत्पाद जो निश्चित रिटर्न का वादा करता है। इसके बावजूद एलआईसी की भारी कामयाबी इस वजह से भी रही कि उसने इस योजना के लाभ के बारे में उतनी पारदर्शिता नहीं बरती है, जितनी उससे उम्मीद की जाती है।

 

दुर्भाग्य ही कहेंगे कि बीमा रेगुलेटर इरडा ने भी ठीक अपनी नाक के नीचे हुई इस योजना की भारी-भरकम खरीद के प्रति अपनी आंखें बंद रखीं। सतह पर देखें तो जीवन आस्था एक सिंगल प्रीमियम अश्योरेंस योजना है जिसमें परिपक्वता या मौत पर लाभ की गारंटी दी गई है। एक ऐसे माहौल में जहां बैंकों ने फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज दरें घटा दी हों, ऐसा लगता है कि यह योजना दोनों ही जरूरतों को पूरी करती थी- एफडी के मुकाबले बेहतर करमुक्त रिटर्न और साथ में बीमा कवर। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इसे इतनी भारी प्रतिक्रिया क्यों मिली, हालांकि सतर्क तरीके से गणना की जाए तो सालाना रिटर्न अधिकतर मामलों में 6.75 फीसदी से 7.25 फीसदी के बीच बैठता है!

 

हमने हमेशा निवेशकों के तईं ज्यादा फाइनांशियल लिटरेसी और कंपनियों के स्तर पर अधिक ट्रांसपेरेंसी की वकालत की है। इसके बावजूद इसमें शक पैदा होता है कि ठीक-ठाक जानकारी रखने वाले निवेशक भी आखिर क्यों नहीं उस परदे के पीछे झांक सके, जिस पर एलआईसी ने लाभ की मुहर लगा रखी थी। मसलन, यदि किसी बीमा योजना पर देय प्रीमियम तय राशि के 20 परसेंट से ज्यादा होता है, तो बीमा की प्रक्रिया करारोपण के योग्य हो जाती है। जीवन आस्था के मामले में एकल प्रीमियम मेच्योरिटी राशि से कई मामलों में 20 परसेंट से ज्यादा बैठता है और इस तरह मेच्योरिटी राशि पर टैक्स लगना लाजिमी हो जाता है। एलआईसी ने यही बात छुपाए रखी। यह समय की दरकार है कि बाजार के खिलाड़ी निवेशकों के साथ चूहा-बिल्ली की दौड़ खेल कर पैसे बनाना छोड़ें। यदि ऐसा नहीं होता है, तो नियामक संस्थाओं को तत्काल दखल देना चाहिए और उन्हें ऐसा करने को बाध्य करना चाहिए।

 

 

Incom Tax Planning : इनकम टैक्स प्लानिंग

अपनी याददाश्त पर जोर डालकर जरा सोचिए कि आपने  कभी कोई ऐसा व्यक्ति देखा है, जिसने अपनी आयकर देनदारी को देखने के बाद लंबी सांस न ली हो। दूसरी ओर आपको ऐसे बहुत से लोग याद आ जाएंगे, जो मार्च से पहले आयकर बचाने के लिए निवेश को लेकर भाग-दौड़ करते हैं या कोई ऐसा सहकर्मी जो आयकर कानून की धारा 80सी के तहत एक लाख रुपए की पूरी कर छूट का लाभ उठाने के लिए बाकी बचे 30,000 रुपए के निवेश के लिए किसी बीमा पॉलिसी की तलाश में है।


इसमें कोई शक नहीं है कि कर योजना महत्वपूर्ण काम है लेकिन अधिकांश लोगों का नजरिया इसे लेकर लापरवाही का होता है। उनका प्रयास मौजूदा जरूरत को पूरा करने के लिए तुरंत कोई उपाय खोजने का होता है। ज्यादातर लोग इसे एक ऐसी जरूरत के तौर पर देखते हैं, जिसे पूरा करना आवश्यक होता है लेकिन इसका उनके वित्तीय से जुड़े लक्ष्यों या वित्तीय योजनाओं से कोई संबंध नहीं होता। फाइनेंशियल प्लानरों का कहना है कि कर योजना को वित्तीय योजना का अहम हिस्सा मानना चाहिए।


कर लाभ का वादा करने वाला कोई भी इंस्ट्रूमेंट खरीदने के बजाए, उन्हें ऐसा निवेश चुनना चाहिए जो कर लाभ के साथ ही लंबी अवधि में अच्छा रिटर्न भी उपलब्ध कराए। निवेशकों के लिए ऐसे बहुत से इंस्ट्रूमेंट उपलब्ध हैं, जो इस दोहरी जरूरत को पूरा करते हैं। लेकिन इनमें निवेश से पहले आपको अपने मौजूदा पोर्टफोलियो पर नजर डालकर यह देखना होगा कि कितनी कटौती के लिए आप पहले से योग्य हैं और कितना अंतर आपको पूरा करना है। ईटी कर बचत योजना को लेकर कुछ फायदेमंद निवेश के विकल्पों की यहां जानकारी दे रहा है।

 

अगर आप इक्विटी में निवेश चाहते हैं, लेकिन खुद से कोई जोखिम नहीं उठाने की इच्छा रखते तो कर बचाने वाले फंड इसका एक अच्छा जरिया हैं। इनमें निवेश से आपको धारा 80सी के तहत एक लाख रुपए तक की कटौती का लाभ मिलता है। हालांकि, इन फंड में आमतौर पर तीन वर्ष की लॉक-इन अवधि होती है और इसी वजह से इनमें वह रकम लगाने की सलाह दी जाती है जिसकी आपको कम से कम अगले तीन वर्ष के लिए आवश्यकता नहीं है।

 

अगर आप जोखिम से बचने वाले व्यक्ति हैं और अपना पैसा बैंक से नहीं निकालना चाहते तो आप कर बचाने के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इस समय केवल पांच वर्ष के फिक्स्ड डिपॉजिट (क लाख रुपए) पर ही कर लाभ की पेशकश है। मौजूदा ब्याज दरें आम निवेशक के लिए लगभग 8.25 फीसदी और वरिष्ठ नागरिकों के लिए 8.75 फीसदी हैं। ये दरें हालांकि बाजार में उपलब्ध अन्य फिक्स्ड डिपॉजिट के मुकाबले कम हो सकती हैं लेकिन एफडी पर मैच्योरिटी पर मिलने वाली रकम इस समय कर मुक्त है।


फाइनेंशियल प्लानर वीर सरदेसाई का कहना है कि अगर आपको एफडी और ईएलएसएस में से किसी एक का चुनाव करना है तो इसके लिए कर योजना को संपत्ति बढ़ाने के लक्ष्य के साथ देखना चाहिए। अगर आप रिटर्न के लिहाज से देखें तो ईएलएसएस में एफडी से बेहतर लाभ मिलने की संभावना होती है। अगर कोई व्यक्ति एफडी में निवेश को ही पसंद करता है तो उसके लिए सरदेसाई की सलाह है कि मौजूदा दौर में इस विकल्प में वही रकम लगाना सही रहेगा, जो आपने आपात जरूरतों के लिए अलग रखी है।

 

आईट्रस्ट फाइनेंशियल एडवाइजर्स के सह-संस्थापक, कार्तिक वर्मा के अनुसार, 'कर चुकाने के बाद रिटर्न बढ़ाने के लिए 35-45 आयु वर्ग में आने वाले बहुत से लोग हर साल बीमा पॉलिसी लेते हैं, लेकिन इनमें से बहुत सी पॉलिसी की उन्हें जरूरत नहीं होती।' विशेषज्ञों की सलाह है कि अगर आप बीमा पर विचार कर रहे हैं तो आपको ऐसी योजना में निवेश करना चाहिए, जो न केवल बीमा सुरक्षा दे बल्कि निवेश का मौका भी उपलब्ध कराए। इनमें यूलिप जैसे प्रोडक्ट शामिल हैं।


अर्न्स्ट एंड यंग के टैक्स पार्टनर कि अमिताभ सिंह भी इससे सहमत हैं। उनका कहना है, 'जीवन बीमा पॉलिसियों से मिलने वाला भुगतान कर मुक्त होता है। इसे देखते हुए किसी बीमा पॉलिसी से 10 फीसदी का रिटर्न भी अच्छा माना जाएगा।

 

होम लोन और एजुकेशन लोन पर कर कटौती उपलब्ध है। ज्यादातर लोन की अवधि 10-20 वर्ष की होती है और बहुत से लोग ऐसा मानते हैं कि लोन की अदायगी के अवधि लंबी होने पर वह ज्यादा समय तक कर लाभ ले सकते हैं। अमिताभ का कहना है कि धारा 80 सी के तहत कर कटौती केवल मूल धन की अदायगी पर उपलब्ध है।


ब्याज के हिस्से पर कर कटौती धारा 24 के तहत आती है और यह इस बात पर निर्भर करती है कि घर किराए पर दिया गया है या आप इसमें स्वयं रह रहे हैं। लंबी अवधि के लोन में ब्याज का हिस्सा काफी अधिक होता है और अगर ब्याज पर मिलने वाली कर कटौती से आप अधिक ब्याज का भुगतान कर रहे हैं तो इस विकल्प पर दोबारा विचार करें। अगर आप एजुकेशन लोन लेते हैं तो इसके ब्याज पर कर कटौती का फायदा मिल सकता है।

 

जोखिम से बचने वाले निवेशकों के लिए कुछ ऐसी छोटी बचत योजनाएं मौजूद हैं जिनमें निश्चित रिटर्न के साथ ही कर लाभ भी मिलता है। उदाहरण के तौर पर 15 वर्ष के पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ) में वार्षिक योगदान पर आपको 8 फीसदी का ब्याज (यह बदल सकता है) मिलता है लेकिन इसमें आप एक वर्ष में 70,000 रुपए तक की जमा राशि पर ही धारा 80सी के तहत कर लाभ ले सकते हैं। ब्याज से मिलने वाली आमदनी आयकर कानून की धारा10 (11) के तहत कर मुक्त होती है।


इसके साथ ही कुछ अन्य विकल्पों में भी आप निवेश कर सकते हैं। इनमें राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी), पांच वर्ष की डाकघर जमा योजना या वरिष्ठ नागरिकों के लिए बचत योजना भी शामिल है। यह योजना उन लोगों के लिए ही है, जो 60 वर्ष से अधिक की आयु के हैं या जिन्होंने 55 वर्ष की उम्र में स्वैच्छिक सेवानिवृति ली है। खुद के लिए या माता-पिता के लिए ली गई मेडिक्लेम पॉलिसी पर भी आप धारा 80डी के तहत अधिकतम 35,000 रुपए की कर कटौती ले सकते हैं।

 

35 वर्षीय महेश भटनागर धारा 80 के तहत कर लाभ लेने के लिए पांच वर्ष से प्रतिवर्ष एक लाख रुपए ईएलएसएस में निवेश कर रहे हैं। उनके निवेश का बाजार मूल्य आज 3.5 लाख रुपए है। ईएलएसएस फंड में 3 वर्ष की लॉक-इन अवधि होने की वजह से इसमें से केवल 2.5 लाख रुपए ही वह भुना सकते हैं। महेश अब 30 लाख रुपए का एक घर खरीदने की योजना बना रहे हैं। वह 24 लाख रुपए का लोन ले सकते हैं लेकिन बाकी की रकम के लिए उनके पास केवल मौजूदा निवेश ही उपलब्ध है।

 

5 वर्ष तक 5 लाख रुपए का निवेश करने के बावजूद वह 6 लाख रुपए जुटाने में असमर्थ हैं।


रास्ता


पहले दो वर्ष में वह संपत्ति के सही आवंटन और धारा 80 सी के तहत अधिकतम लाभ लेने के लिए इक्विटी और एनएससी में निवेश कर सकते थे। बाद के वर्षों में वह 80 सी के तहत बीमा, प्रॉविडेंट फंड में योगदान और अपनी बेटी की स्कूल फीस पर कर कटौती के जरिए कर बचा सकते थे।

कैसे उठाएं टैक्स छूट का फायदा

कर चुकाने से बचा नहीं जा सकता है और इसका भुगतान करना हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है। क्यों न नए साल पर हम उपलब्ध कर छूट की जानकारी बटोरने के लिए मेहनत करने और उनका फायदा उठाने का प्रण लें। 

इस तरह आप मेहनत की गाढ़ी कमाई बचा सकते हैं और अतिरिक्त कर का भुगतान करने से बच सकते हैं। हर व्यक्ति कर छूट क्लेम करना चाहता है और इसमें कोई संदेह नहीं है कि कर चुकाते वक्त पैसा बचाना सभी की वित्तीय प्राथमिकताओं की सूची में शीर्ष पर होता है। लेकिन आय कर कानून की जटिलताओं पर गौर करने के बाद कितने ऐसे लोग होंगे जो इन छूट के बारे में वास्तव में जानकारी रखते हों या उनका पूरा फायदा उठाते हों। निश्चित रूप से आप इनमें से कुछ को नजरअंदाज कर बैठे हों। 

आइए, कर छूट का फायदा देने वाले ऐसे कुछ बिंदुओं पर गौर करें जिन्हें आम तौर पर नजरअंदाज किया जाता है- 

होम स्वीट होम 

आपका मकान केवल सिर ढकने के लिए छत ही नहीं देता बल्कि कर से बचने का रास्ता भी मुहैया कराता है। अगर आप किराए के अपार्टमेंट में रहते हैं और वेतनभोगी हैं तो हाउस रेंट एलाउंस क्लेम कर सकते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो आप कुल आमदनी के 10 फीसदी से ज्यादा बतौर किराए चुकाने पर कर छूट क्लेम कर सकते हैं। हालांकि इस मामले में कुछ शर्तें होती हैं। अगर आप अपने मकान में रहते हैं तो किसी भी वित्तीय संस्थान से मिलने वाले लोन पर चुकाए गए ब्याज पर कर छूट ले सकते हैं। कई लोग इस रकम को केवल 150000 रुपए तक सीमित मान लेते हैं। हालांकि यह ध्यान रखना जरूरी है कि ऐसा प्रॉपटीर् के निजी इस्तेमाल के मामले में होता है और जहां मामला प्रॉपर्टी किराए पर देने की बात होती है, उसमें ऐसा नहीं होता। 

परोपकार का फायदा 

दान पर भी कर छूट मिलती है। अगर हम उन्हें चेक के माध्यम ये भुगतान करते हैं तो ज्यादा लंबे वक्त तक याद रखते हैं लेकिन अगर नकद दान देते हैं तो कुछ ही वक्त में भुला बैठते हैं। यह जरूरी है कि धर्मार्थ दान देते वक्त अपनी भी मदद की जाए। कहा भी जाता है कि चैरिटी सबसे पहले घर से शुरू होती है। हमें सिर्फ इतना करना है कि कर छूट के तहत आने वाले दान में दिए गए पैसे की रसीद भर चाहिए। और हमें वह जगह नहीं भूलनी चाहिए जहां ऐसी रसीद रखी जाती हैं। 

शिक्षा 

आज कर शिक्षा का खर्च आसमान छू रहा है जिससे वित्तीय बोझ भी बढ़ रहा है। इस सिलसिले में आप अपने पुत्र या पत्नी की उच्च शिक्षा के लिए लोन ले सकते हैं और ऐसे लोन पर दिया जाने वाला ब्याज का भुगतान आपको कर छूट उपलब्ध कराएगा। 

सेहत ही धन है 

मेडिकल इंश्योरेंस पर भी कर छूट मिलती है। हालांकि यह 15000 रुपए जैसी छोटी रकम पर मिलती है, लेकिन इसे नजरअंदाज करना सही नहीं है। मां-बाप के लिए मेडिकल इंश्योरेंस प्रीमियम पर 15000 रुपए की अतिरिक्त छूट मिलती है। इसके अलावा अगर आपने किसी ऐसे व्यक्ति के मेडिकल खर्च का बोझ उठाया है, जो आप पर निर्भर है तो आपको 40000 से लेकर 75000 रुपए तक की रकम पर छूट मिल सकती है। 

दूसरे बिंदू 

जीवन बीमा प्रीमियम, डेफर्ड एन्युटी, प्रॉविडेंट फंड में जमा पैसे, ट्यूशन फीस, हाउस लोन कर छूट के एक लाख रुपए के दायरे में आते हैं।

Tax Rebate on HRA : एचआरए पर मौजूद है टैक्स लाभ

आयकर कानून में मकान किराया भत्ता (एचआरए) के लिए कटौती की अनुमति दी जाती है। अधिकतर कंपनियां अपने कर्मचारियों को किराए पर मकान लेने के खर्च की भरपाई के लिए एचआरए का भुगतान करती हैं। यह वेतन का एक हिस्सा होता है। 

एचआरए पर कर छूट आयकर कानून की धारा 10 (13ए) और आयकर नियमों की नियम संख्या २ए के तहत मिलती है। यह याद रखना जरूरी है कि एचआरए की पूरी राशि की कटौती नहीं होती। यह एक भत्ता है और इसके लिए आयकर देना होता है। एक कर्मचारी तभी छूट का दावा कर सकता है, जब वह किराए के मकान में रहता है। 

कटौती के लिए कर्मचारी को मकान के किराए का वास्तविक भुगतान करना होता है। अगर वह अपने घर में रहता है तो उसे कोई टैक्स छूट नहीं मिलती और पूरी राशि पर आयकर चुकाना होता है। अगर मकान के किराए का कर्मचारी भुगतान नहीं करता तो उसे कटौती नहीं मिलेगी। 

आयकर कानून के मुताबिक एचआरए पर छूट इनमें से सबसे कम राशि पर मिलती है: 

कर्मचारी को उस अवधि के लिए मिली वास्तविक एचआरए राशि जिसमें वह पिछले वित्त वर्ष में किराए के मकान में रहा था। 

वह राशि जो कर्मचारी ने घर के किराए पर खर्च की हो और जो संबंधित अवधि में उसके वेतन के दसवें हिस्से से अधिक हो। 

अगर घर मुंबई, कोलकाता या दिल्ली में हैं तो संबंधित अवधि में वेतन का 50 फीसदी। अन्य शहरों के लिए यह वेतन का 40 फीसदी है। 

वेतन में मूल वेतन के साथ ही निम्न भी शामिल होते हैं: 

महंगाई भत्ता, अगर उसे नौकरी की शर्तों के अनुसार मिलता है। 

कर्मचारी ने जो टर्नओवर का निश्चित फीसदी हासिल किया है, उस पर कमीशन। 

कर कटौती उसी अवधि के लिए मिलेगी जिसमें कर्मचारी किराए के मकान में रहा हो। इसके बाद ही अवधि के लिए यह उपलब्ध नहीं होगी।

Pension Plan : पेंशन प्लान के लिए भविष्य की जरूरतों का अनुमान जरूरी

पिछले कुछ समय से वित्तीय बाजारों पर अनिश्चितता केबादल घिरने की वजह से दौराननिवेशकों के बीच रिटायरमेंट कीयोजना तैयार करने की जरूरतको तरजीह दी जाने लगी है।हाई वोल्टेज मार्केटिंगरणनीतियों ने कई तरह से इसमें भूमिका अदा की है लेकिन जीवनकालबढ़ने और नौकरी एवं कॅरियर के मोर्चे पर लगातार बढ़ती अनिश्चिय कीस्थिति की वजह से लोग पेंशन प्लान के बारे में सोचने पर मजबूर हो गए हैं।

 

इसके फलस्वरूप पेंशन प्लान निवेश पर अब केवल कर छूट का फायदाउठाने के लिए गौर नहीं किया जाता बल्कि लोग संजीदा होकर पेंशन सेहोने वाली आमदनी के बारे में सोचने लगे हैं। वेतनभोगी लोगों के पासरिटायर होने के बाद ग्रेच्युटी और पेंशन इनकम का सहारा होता हैलेकिन जो व्यक्ति स्वरोजगार में लगे लोगों के पास केवल पेंशन प्लानका ही सहारा होता है। इससे रिटायरमेंट की बाद की जिंदगी के लिएउनके पास नियमित आय का स्रोत बरकरार रहता है।

 

हालांकि पेंशन प्लान निवेशकों के दोनो समूहों के लिए फायदेमंद हैक्योंकि यह सामान्य निवेश उत्पाद है जिसमें बहुत कम प्रबंधन कीजरूरत पड़ती है। अगर आप यह जानना चाहते हैं कि यह उत्पाद कामकैसे करता है तो जरा इस ब्योरे पर नजर डालिए :

 

पेंशन प्लान बीमा कंपनियां मुहैया कराती हैं और कुछ म्यूचुअल फंडइसकी पेशकश करते हैं। पेंशन रोजगार से सेवानिवृत्ति के बाद मिलती हैलेकिन निवेशक अपने मन - मुताबिक अवधि तय कर सकता है। मसलन, 50 वर्षीय एक पेशेवर 10 साल की टर्म के लिए पेंशन प्लानले सकता है लेकिन अगर उसे लगता है कि उसे फिलहाल पेंशन सेमिलने वाले पैसे की जरूरत नहीं है तो वह यह अवधि पांच और साल के लिए बढ़ा सकता है।

 

सौभाग्य से आप ऐसा फैसला पेंशन प्लान लेते वक्त ही नहीं बल्कि 60के करीब पहुंचने पर भी कर सकते हैं। इसलिए , युवा निवेशकों के पासपेंशन के लिए ज्यादा रकम एकत्र करने का विकल्प होता है जबकि जोइस बारे में देर से सोचते हैं, उनके हाथ में कम वक्त होता है।

 

कई लोगों के लिए सबसे बड़ी चुनौती पेंशन प्लान के लिए प्रीमियम तयकरना होता है। तकनीकी रूप से, पेंशन फंड को रिटायरमेंट कीबाद की जिंदगी के लिए पैसे काइंतजाम सुनिश्चित करनाचाहिए। हालांकि , जीवन केशुरुआती चरण में आंकड़ें तयकरना इतना आसान नहीं होताक्योंकि थोड़े वक्त में ही हमारीजरूरतों और जीवनशैली मेंगजब का बदलाव आ जाता है।

 

इसलिए , दिमाग में यह बात रखना जरूरी है कि एक पेंशन प्लान सेशायद आपकी जरूरतें पूरी न हों और आपको ऐसी एक और स्कीमलेनी पड़े। एक से ज्यादा पेंशन प्लान का विकल्प है पति और पत्नी केलिए अलग - अलग पेंशन प्लान जो लंबी अवधि में कर छूट का फायदा भी मुहैया कराता है।

 

सेवानिवृत्ति के बाद कितनी पेंशन की जरूरत होगी , इसका अंदाजा लगाने का सबसे आसान तरीका मौजूदा जरूरतों के आधार पर रकम कापता लगाना है। मासिक खर्च का ब्यौरा तैयार करते वक्त बच्चे की शिक्षाजैसे व्यय को इसके दायरे से बाहर ही रखिए क्योंकि रिटायरमेंट के बादऐसा खर्च आपको नहीं चुकाना होगा।

 

पेंशन को भविष्य की वैल्यू के आधार पर मासिक खर्च के कम से कम 50 फीसदी हिस्से का ख्याल रखना चाहिए। उदाहरण के लिए अगर किसी 35 वर्षीय निवेशक का मासिक खर्च 50,000 रुपए है तो उसे इसरकम की भावी वैल्यू तक पहुंचना चाहिए और फिर पेंशन की रकम परगौर करना चाहिए। रिटायरमेंट या पेंशन की रकम का आकलन करते वक्त लिक्विड फंडऔर सावधि जमा जैसे वित्तीयसंपत्तियों पर गौर करना चाहिए।

 

प्रॉपर्टी और किराए से होने वालीआमदनी पर भी विचार करनाचाहिए। हालांकि निवेशकों कोखर्च का अंदाजा लगाते वक्तमहंगाई दर के मामले में खुलारुख दिखाना चाहिए और इसकाआकलन कम से कम 8-9 फीसदी की दर से किया जाना चाहिए।

 

थोक मुद्रास्फीति दर औसतन पांच फीसदी के आसपास रहती है लेकिनजब बात स्वास्थ्य सेवा जैसे खर्च की आती है तो यह काफी ज्यादाहोता है। पेंशन प्लान का प्रीमियम आपकी उम्र और पेंशन की रकम परनिर्भर करता है। अगर कम उम्र में आप इसमें निवेश करते हैं तो कमप्रीमियम पर अधिक पेंशन का लाभ उठा सकते हैं। उम्र बढ़ने परप्रीमियम की रकम भी बढ़ जाती है।

 

पेंशन की शुरुआत का समय आप स्वयं तय कर सकते हैं। अगर आपप्राइवेट सेक्टर में नौकरी करते हैं जहां पेंशन की सुविधा नहीं है तोअपने जीवन के सुनहरी वर्षों में वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिएआप पेंशन प्लान में निवेश कर सकते हैं।


Source: ET Hindi

Save Tax on Medical Insurance : मेडिकल इंश्योरेंस पर ले सकते हैं टैक्स का लाभ

सालाना आमदनी पर कर बचाने के लिए एक लाख रुपए की बचत की सीमा के बारे में सभी जानते हैं।लेकिन बहुत कम लोगों को इसबात की जानकारी है कि करबचाने के लिए आयकर कानूनकी धारा 80 डी का भी इस्तेमालकिया जा सकता है। 

विकास ने अपने पूरे परिवार केलिए मेडिकल इंश्योरेंस ली है।वह प्रतिवर्ष खुद के लिए 9,000 रुपए और अपनी पत्नी के लिए 8,000रुपए प्रीमियम का भुगतान करते हैं। इसके अलावा वह अपने पिता केलिए 7,000 रुपए और चाचा के स्वास्थ्य बीमा के लिए 6,000 रुपएसालाना का प्रीमियम भरते हैं। क्या वह इस पर कर कटौती का लाभ लेसकते हैं 

मेडिकल इंश्योरेंस आप खुद के साथ साथ अपने परिवार के लिए भीले सकते हैं और धारा 80 डी के तहत प्रीमियम की राशि आय में सेकटौती के योग्य होती है। यह कटौती प्रीमियम की राशि या 15,000रुपए जो भी कम हो के लिए मिलती है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए यहप्रीमियम की राशि या 20,000 रुपए जो भी कम हो है। कटौती उसीस्थिति में उपलब्ध होती है जब प्रीमियम का भुगतान चेक या क्रेडिटकार्ड के जरिए किया जाए। नकद भुगतान पर यह लाभ नहीं मिलता। 

करदाता खुद के लिए पति या पत्नी के लिए आश्रित माता पिता याआश्रित बच्चों के लिए ली जाने वाली मेडिकल इंश्योरेंस पर ही कर लाभले सकता है। इसके लिए भी जरूरी है कि उस मेडिकल इंश्योरेंस स्कीमको जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन या बीमा नियामक एवं विकासप्राधिकरण इरडा से मंजूरी प्राप्त हो। अगर आप अपने परिवार के साथही 65 वर्ष से अधिक आयु वाले माता पिता के लिए इंश्योरेंस लेते हैंतो आप इस पर 35,000 रुपए तक की कर कटौती ले सकते हैं। 
विकास के मामले में कर कटौती इस प्रकार होगी 

खुद के बीमा के लिए प्रीमियम का भुगतान 000 रुपए 

पत्नी के लिए प्रीमियम का भुगतान 000 रुपए 

कुल प्रीमियम 000 रुपए जमा 8,000 रुपए ): 17 000 रुपए। 

नियम के अनुसार विकास बीमा के प्रीमियम की राशि या 15,000 रुपएमें से जो भी कम राशि हो उस पर कर कटौती ले सकते हैं। विकासके लिए यह राशि 15,000 रुपए की होगी। विकास अपने पिता कीमेडिकल इंश्योरेंस के लिए 7,000 रुपए के प्रीमियम पर भी कर कटौतीका लाभ ले सकते हैं। इस तरह उनकी कुल कटौती 15 000 रुपएजमा 7,000 रुपए 22 000 रुपए की होगी। विकास ने अपने चाचा केबीमा के लिए जिस प्रीमियम का भुगतान किया है उस पर उन्हें कोईकर लाभ नहीं मिलेगा। 

अगर पति और पत्नी दोनों नौकरीपेशा हैं तो वे हेल्थ इंश्योरेंस के वार्षिकप्रीमियम पर अलग अलग 15,000 रुपए तक की कर कटौती ले सकतेहैं। अगर दोनों मिलकर 20,000 रुपए का प्रीमियम भरते हैं तो उनमें सेएक 15,000 रुपए और दूसरा 5,000 रुपए की कटौती का दावा कर सकताहै। 

आज के दौर में चिकित्सा और अस्पताल का खर्च काफी महंगा हो गयाहै विशेषकर वरिष्ठ नागरिकों के लिए इसका भार सहना काफी मुश्किलहोता है। ऐसे में करदाता मेडिक्लेम के जरिए अपने परिवार के लिएस्वास्थ्य बीमा लेकर सुरक्षा के साथ ही धारा 80 डी के तहत कर लाभले सकते हैं।

Source : ET Hindi