Monday, January 26, 2009

Lesser Knoledge is the reason for Internet Banking Frauds : कम जानकारी है इंटरनेट बैंकिंग फर्जीवाड़े की वजह

इंटरनेट बैंकिंग के आदी हो चुके लोगों के लिए बैंक शाखा में जाने कीयादें भी धुंधली हो गई होंगी। रकम का स्थानांतरण करना हो यूटिलिटीबिलों का भुगतान हो या फिर यात्रा के टिकट खरीदना हो बैंक केग्राहक इतनी तेज गति से इंटरनेट का रुख कर रहे हैं जो इतिहास मेंकभी नहीं देखी गई। 

जिन लोगों ने बैंकिंग के लिए अब तक इंटरनेट का रुख नहीं किया है ,वे जल्द ही अल्पसंख्यकों में गिने जाएंगे। पब्लिक सेक्टर के बैंकों नेकोर बैंकिंग सॉल्यूशन का इंतजाम किया है और बड़े पैमाने परइंटरनेट बैंकिंग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। सरकारी बैंकों के ग्राहकोंमें से 30 फीसदी बैंकिंग लेन देन के लिए पहले से ही ऑनलाइनमाध्यम का इस्तेमाल कर रहे हैं। 

दूसरी ओर प्राइवेट बैंकों ने इंटरनेट बैंकिंग का रुख करने वाले ग्राहकोंकी तादाद में 40 से 80 फीसदी का इजाफा देखा है। ऑनलाइन बैंकिंगअपनाने का चलन जोर पकड़ चुका है इसके बावजूद कई यूजर सुरक्षासे जुड़े मुद्दों को लेकर काफी चिंतित नजर आ रहे हैं। कोटक महिंद्राबैंक में ग्रुप हेड रीटेल लायबिलिटीज एंड ब्रांच बैंकिंग के वी एसमानियान ने कहा , ' ग्राहकों के लिए ऑनलाइन बैंकिंग में चिंता कीसबसे बड़ी वजह सुरक्षा से जुड़ा पहलू है। 

इन चिंता का समाधान बैंक और ग्राहक दोनों को मिलकर निकालनाहोगा। बैंकरों और आईटी जानकारों का मानना है कि सिक्योरिटीसिस्टम नहीं बल्कि ग्राहकों के बीच जानकारी और जागरूरकता की कमीके कारण इंटरनेट फर्जीवाड़े होते हैं। 

ऑनलाइन लेन देन के लिए साइबर कैफे से दूर रहना ही बेहतर है।साइबर सेंटर में आपके डाटा के वायरस की जद में आने की आशंकाज्यादा होती है और दुरुपयोग का खतरा बढ़ जाता है। गार्टनर मेंप्रिंसिपल रिसर्च एनालिस्ट आशीष रैना ने बताया , ' अगर आप इंटरनेटकैफै से वेबसाइट तक पहुंचने की कोशिश करते हैं तो लाइन औरसिस्टम सुरक्षित नहीं होता। आप इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं होसकते कि कैफे के सिस्टम में इस्तेमाल हो रहा सॉफ्टवेयर कितनाविश्वसनीय है। इसके अलावा डेस्कटॉप कुकीज सिस्टम में सेव होते हैंऔर चतुर हैकर उन्हें आपके बैंक खाते तक पहुंचने में इस्तेमाल करसकता है। 

यही बात उन लोकेशन पर लागू होती है जो वायरलेस नेटवर्क वाई -फाई के जरिए ऑनलाइन कनेक्शन मुहैया कराते हैं। आपके दफ्तर केडेस्कटॉप ज्यादातर दुर्भावनापूर्ण हमलों से बच सकते हैं क्योंकि उन्हेंअधिकतर आप खुद इस्तेमाल करते हैं और पासवर्ड भी सुरक्षित होताहै। 

इसबात की काफी संभावना है किसार्वजनिक रूप से उपयोग किएजाने वाले कंप्यूटरों में कीलॉगिंग सॉफ्टवेयर हो। यहऑनलाइन बैंकिंग की समूचीगुणवत्ता से समझौता हो सकताहै। 

स्पाइवेयर और ट्रॉजन प्रोग्राम जैसे सॉफ्टवेयर प्रोग्राम कीपैड पर कीस्ट्रोक याद रखने के लिए डिजाइन किए गए हैं। फ्री डाउनलोड के जरिएइन सॉफ्टवेयर को अपने सिस्टम में जगह दी जा सकती है। इनमें कीस्ट्रोक लॉगर इंस्टॉल करने और ग्राहक की व्यक्तिगत जानकारी एकत्रकर अवांछित तत्वों तक पहुंचाने की क्षमता होती है। 

अगर कोई ग्राहक पायरेटेड सॉफ्टवेयर उपयोग कर रहा है तो एंटी -वायरस सॉफ्टवेयर में इन वायरस से लोहा लेने का दम नहीं होता।दूसरा बड़ा खतरा भारत में सॉफ्टवेयर का गैर कानूनी इस्तेमाल है जोकरीब 69 फीसदी है। सॉफ्टवेयर पायरेसी भले व्यापारिक फायदे मुहैयाकराए लेकिन इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है। 

साइमनटेक कॉरपोरेशन में वाइस प्रेसिडेंट इंडिया प्रोडक्ट ऑपरेशनशांतनु घोष ने कहा , ' इसमें लेन देन की सुरक्षा से काफी समझौताहोता है क्योंकि पायरेटेड या नकली ऑपरेटिंग सिस्टम या सॉफ्टवेयर काइस्तेमाल वायरस और दुर्भावनापूर्ण कोड हमलों से खतरा बढ़ा देता है।इससे कंप्यूटर आसानी से खतरे की जद में आ जाता है और आपकीजानकारी के बगैर कंप्यूटर से क्रेडिट कार्ड बैंक खाता पासवर्ड एड्रेसबुक से जुड़ी जानकारी समेत आपकी व्यक्तिगत और गोपनीय सूचना कीचोरी हो सकती है। पायरेटेड सॉफ्टवेयर के जरिए चोरी हुई जानकारी कादुरुपयोग बहुत जल्द किया जा सकता है। 

फिशिंग हो या फिर स्पाइवेयर या ट्रॉजन जैसे वायरस ज्यादातर बैंकइनसे 128- बिट एसएसएल एनक्रिप्टेड मीडियम से निपटते है जोइंटरनेट में सुरक्षा का उच्चतम स्तर है लेकिन ग्राहक पासवर्ड डालने केलिए फिजिकल कीपैड के अलावा ऑनलाइन की बोर्ड का इस्तेमालकर एक कदम और आगे जा सकते हैं। 

जब कोई ग्राहक नेट बैंकिंग के लिए पंजीकरण कराता है तो उसके पासवर्चुअल की बोर्ड का विकल्पभी होता है। मॉनिटर फिजिकलकीपैड की तरह की बोर्डदिखाता है। संबंधित की दबाइएऔर नेट बैंकिंग कीजिए। इसमेंएक और खेल है। स्क्रेम्बलवर्चुअल की पैड होता है जोग्राहक के साइन इन करने परहर बार की पोजिशन में बदलावकर देता है। 

बैंक भी डेबिट कार्ड का इस्तेमाल कर नेट बैंकिंग करने में कम से कमदो स्तरीय ऑथेटिकेशन प्रक्रिया मुहैया कराते हैं। पहला स्तर यूजर नामऔर पासवर्ड से जुड़ा है। दूसरे स्तर में अतिरिक्त पासवर्ड न्युमेरिकसिक्योरिटी कोड या आंसरिंग पर्सनलाइज्ड सवाल होते हैं। 

पटेल ने बताया , ' पर्सनलाइज्ड इमेज और फ्रेज को तोड़ना धोखेबाजोंके लिए मुश्किल होता है क्योंकि यह केवल ग्राहक को पता होता है।इसका उद्देश्य नेट बैंकिंग करने के लिए अतिरिक्त और पर्सनलाइज्डलेयर मुहैया कराना है। 

इसके अलावा ग्राहक पंजीकृत लाभार्थियों को फंड ट्रांसफर कर सकते हैं।मानियान ने बताया , ' इसके अलावा सभी ऑनलाइन लेन देन होनेपर ग्राहक के ईमेल आईडी और मोबाइल नम्बर पर तुरंत अलर्ट भेजाजाता है। एसएमएस और ईमेल अलर्ट सुरक्षा का दूसरा दौर है।ऑनलाइन ट्रांजेक्शन से तुरंत अलर्ट जाता है। ऐसे कुछ साधारण टिप्सजो ग्राहक आजमा सकते हैं 

क्या आपने कभी ऐड्रेस बार में यूआरएल की जांच की है वास्तविकवेबसाइट https:// से शुरू होती है न कि http:// से। यहां पर अंग्रेजीवर्णमाला के एस से सुरक्षा के मायने हैं। साथ ही व्यक्तिगत जानकारीमांगने वाले उन आग्रहों पर जरा भी गौर मत कीजिए जो बैंकएग्जिक्यूटिव होने का दम भरते हैं। 

अंतत अपने पासवर्ड में लगातार बदलाव करना भी फायदे का सौदाहै। अल्फा न्यूमेरिक का इस्तेमाल बढ़िया रहता है। इसमें कोई संदेहनहीं है कि ग्राहकों के लिए ऑनलाइन लेन देन को सुरक्षित बनाएरखने के लिए बैंकों ने एहतियाती कदम उठाए हैं लेकिन वे तभीकामयाब होंगे जब आप कुछ मेहनत करें।

Source: ET Hindi





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